Sunday 1 September 2019

नाचनी का नाम (Etymology)

      नाचनी एक छोटा सा क़स्बा है जो पिथौरागढ़ ज़िले के तल्ला जोहार में  अवस्तिथ है। इसकी भौगोलिक संरचना एक दोआब की भाँति प्रतीत होती है किंतु यह एक V आकार की घाटी है जिसका निर्माण युवावस्था  में नदियों द्वारा अपरदन से होता है ।
       नाचनी का सामाजिक विन्यास मिश्रित प्रकार का है जिसमें नगरीय एवं ग्रामीण  समाज दोनो का  समावेश है।साथ ही यहाँ किसी भी जाती , नृजाती ( Ethenicity) , जनजाति के प्रभुत्व का कोई साक्ष तथा प्रारूप  दिखलाईं नहीं पड़ता । अतः सामाजिक संरचना  मिश्रित एवं सामवेशी है ।
      नाचनी के  शब्दार्थ , नामकरण , नाम की उत्पत्ति ( Etymology)के विषय  में इतिहासकार , ब्रिटिश विद्वान , यात्रा वृतांत , पुरातत्वविक साक्ष के  साथ साथ  बाबा गूगल ने भी मौनव्रत धारण किया हुआ है।इतिहासकार  बी डी पाण्डे की पुस्तक कुमाऊँ का इतिहास , एटकिंसन की हिमालयन गज़ेटीअर , देवेंद्र सिंह पोखरिया  रचित लोक संस्कृति ऐवम साहित्य , डॉ राम सिंह की सोर घाटी के इतिहास , जिम कॉर्बेट की मैन ईटर्ज़ ऑफ़ कुमाऊँ इत्यादि में भी नाचनी  के नामकरण की कोई जानकारी नहीं है ।

     सामान्यत , कुमाऊँ  की लोक संस्कृति में नदी , जाति , फ़सल , पहाड़ , देवता आदि के नाम पर गाँव , क़स्बों का नामकरण किया गया है । किंतु नाचनी शब्द का स्थानीय नदी , पहाड़ , जाति , देवता से कोई प्रत्यक्ष संबंध भी ज्ञात नहीं है। हमारे पुरखों एवं बुज़ुर्गों की लोक कहावतो तथा दंत कथाओं में भी कोई तार्किक रूप से मान्य उत्तर नही मिलता ।साथ ही नाचनी शब्द  का संबंध पुराण , आर्य , ख़स , किरात , गोरखा , अंग्रेज़ , भोटिया जनजाति से भी नहीं मिलता ।

    नाचनी नाम के शब्दार्थ एवं उत्पत्ति के सम्बंध में  अध्ययन के लिए मैंने दो निम्नलिखित अभिधारणाओ ( Postulates) का एक परिकल्पना ( Hypsothesis) से  तार्किक संबंध स्थापित कर अपने मत को आकार दिया ।

                  प्रथम अभिधारणा का संबंध  नाचनी के शब्दार्थ से है । स्थानीय बोली ( dialect ) में कुमाऊनि , नेपाली एवं शौक़िया का प्रभाव है , परंतु तीनो बोलियों में इस शब्द का कोई अर्थ , प्रयोग ज्ञात नही है । नाचनी शब्द  का ध्वनिक प्रयोग स्थानीय बोली में नचणी , नाचणी , नाछणी के रूप में किया जाता है ।
     नाचणी की समरूपता मराठी भाषा के नाचणी ( Nachani) शब्द से मेल खाती है ,  जिसका शाब्दिक अर्थ हिंदी में रागी अथवा मंडुआ होता है । कोंकण की भाषा , जो मराठी से मिलती जुलती है , में भी नाचणी शब्द का प्रयोग मंडुआ के लिए होता है । तेलुगु भाषा में नाचणी का प्रयोग जोवार और रागी फ़सल से मिलता है । मराठी बहुल क्षेत्रों में नाचनी आटा , नाचनी पराठा , नाचनी घावन ( Raagi Dosha) , नाचनी लड्डू , नाचनी खीर जैसे शब्द प्रचलित है ।

                   प्रथम अभिधारणा के  सत्यापन  के बाद दूसरी अभिधारणा मंडुआ और नाचनी से जुड़ी है । मंडुआ को मराठी में नाचनी बोला जाता है इसका रागी नाम हिंदी में आम रूप से प्रचलित है । मंडुआ को finger millet के रूप में जाना जाता है । मंडुआ मुख्यतः अफ़्रीका की फ़सल है जिसे 2000 ईसा पूर्व भारत में लाया गया । यह फ़सल भारत और नेपाल के हिमालयी क्षेत्रों में बोयी जाती है । नाचनी के क्षेत्रों में भी मंडुआ के पैदावार के लिए भौगोलिक परिस्थितियाँ प्रचुर रूप से उपलब्ध है ।  कुछ दशकों  पूर्व मण्डुआ यहाँ के मूल भोजन ( Staple Food) में शामिल था , किंतु जीवन शैली में बदलाव एवं अत्यधिक पलायन के कारण  मंडुआ के उत्पादन में अत्यधिक गिरावट दर्ज हुईं है । अभी भी आस पास के कुछ गाँवों में मण्डुआ उत्पादन होता है ।निस्सन्देह , नाचनी मण्डुआ  पैदावार का क्षेत्र था ।

     अंतत: , इस परिकल्पना ( Hypostheis ) के प्रारूप को आकार देने में कुछ सवालों ने सहायता की । जैसे नाचनी को मराठी शब्द किसने और क्यों दिया ? क्या कोई यात्री था ? उक्त सवालों ने नाचनी , मण्डुआ और मराठी के मध्य लुप्त कड़ी को खोजने की जिज्ञासा उत्पन्न की ।

     स्थानीय फ़सलों , जातियों , जनजातियों , यात्रियों , राजवंशों , गाँवों आदि के ऐतिहासिक छानबीन से निष्कर्ष आया की नाचनी क्षेत्र की कुछ  राजपूत जातियाँ  मूलरूप से स्थानीय है कुछ  जातियों का संबंध अन्य राज्यों , क्षेत्रों जैसे नेपाल , संयुक्त प्रांत से संबंध है । शाही का नेपाल , धामी का चित्तोरगढ़ , महर का राजपूताना , महरा का मैनपुरी , कार्कि का नेपाल और चितोरगढ़ , मेहता का झाँसी से पलायन का संबंध कुमायूँ के इतिहास में दर्ज है । एटकिंसन और बी॰ डी पाण्डेय के  अनुसार इस  क्षेत्र की ब्राह्मण जाति  जोशी तथा राजपूत जातियों दाणो , मरहटा वंश के महर , दानवंशी बोरा  इत्यादि का संबंध बम्बई और दक्षिण से है ।
       यद्यपि , मराठा शासन के इतिहास पार एक सरसरी निगाह  डालने से पता चलता है कि मराठाओ पर आक्रमण के दौरान अनेक जातियों ने मराठा क्षेत्र से पलायन कर कुमायूँ , मारवाड़ , संयुक्त प्रांत में शरण ली । इन जातियों में प्रमुख रूप से जोशी जाति  ने पलायन किया तथा राजस्थान और कुमाऊँ में शरण ली । इतिहासकार बी डी पांडेय के अनुसार जोशी जाति ने कुमायूँ  के आल्मोरा , दंन्या , जागेस्वर , जोहार में  शरण ली । निष्कर्षत: इन जातियों के मराठी सम्बंध एवं नाचनी के नाम में सम्बंध की झलक देखीं जा सकतीं है ।


दीपक कुमार जोशी
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