Thursday 28 May 2020

कायनात

हर मौसम की पहली बारिश में
बनते है, टूटते है बुलबुले
आंगन में,  कभी सामने के तालाब पर

हम झगड़ते रहते
बाँट लेते बुलबुलों को आपस में
तेरा,  मेरा
छोटा,  बड़ा
तेरा ख़राब ,  मेरा अच्छा

कायनात के खेल का
इंसा भी इक बुलबुला है शायद

समा जाता है सब
अनंत में......
आकाश में.....
समंदर में.....
कायनात में....
जब टूटता है बुलबुला कोई.....



दीपक कुमार जोशी 

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