हर मौसम की पहली बारिश में
बनते है, टूटते है बुलबुले
आंगन में, कभी सामने के तालाब पर
हम झगड़ते रहते
बाँट लेते बुलबुलों को आपस में
तेरा, मेरा
छोटा, बड़ा
तेरा ख़राब , मेरा अच्छा
कायनात के खेल का
इंसा भी इक बुलबुला है शायद
समा जाता है सब
अनंत में......
आकाश में.....
समंदर में.....
कायनात में....
जब टूटता है बुलबुला कोई.....
दीपक कुमार जोशी
बनते है, टूटते है बुलबुले
आंगन में, कभी सामने के तालाब पर
हम झगड़ते रहते
बाँट लेते बुलबुलों को आपस में
तेरा, मेरा
छोटा, बड़ा
तेरा ख़राब , मेरा अच्छा
कायनात के खेल का
इंसा भी इक बुलबुला है शायद
समा जाता है सब
अनंत में......
आकाश में.....
समंदर में.....
कायनात में....
जब टूटता है बुलबुला कोई.....
दीपक कुमार जोशी
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