Monday, 2 October 2017

भारत
भाग III - असभ्य सैनिक

माँ तू ठीक कहती ,
मै जब छुट्टी  आता हूँ ।
जंगली की तरह रहना ,
गँवार जैसे खाना ।।

क्या करूँ माँ ?
बॉर्डर पर टाइम नहीं मिल पाता,
बर्फ पिघलाकर प्यास बुझा लेता हूँ ,
खाने को गोलियाँ बहुत हैं ।

क्या करू माँ ?
मै उन जैसा सभ्य , सलिकेदार
नहीं बन सका ।
जो  देश - विदेश बस जाते,
छूरी-कांटे से खाते,
अंग्रेजी में कहते हैं;
इस देश का कुछ नहीं हो सकता ।।

कॉपीराइट @ दीप्स102

दीपक कुमार जोशी

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