Monday 19 July 2021

Light Pollution : An Apocalypse

       मेरे ऑफिस में जाने के लिये दो रास्ते हैं,एक मुख्य प्रवेश औऱ दूसरा प्रवेश सर्वाधिक प्रयोग में आता है क्योंकि यह पार्किंग  तक पहुंचने का आसान रस्ता है | कल वहा सीढ़ियों के पास बड़ी सी हेलोजन लाइट लगा दी गयी हैं, ताकि रात को अँधेरे में कोई हादसा ना हो  आज सुबह जब मैंने देखा तो चारों तरफ बहुत सारे कीट पतंग मरे हुऐ थे, शायद इनकी गढ़ना हज़ारो के पार हो |

 जैव विविधता के लिहाज से ऐसी key stone species पर बढ़ता खतरा, हमारे लिये हादसा तो साबित नहीं होगी, किंतु आने वाली पीढ़ियों के लिये जरूर हादसे का सबब बनेगी |

मुझे लगता हैं, आने वाले दशक मे Light pollution एक  बड़ी त्रासदि ना बन जाये  हालांकि इसकी चपेट मे मानव के साथ संपूर्ण जैव मण्डल हैं | अनेक species का navigation error, Light attracted death तो हैं ही, हम लोग भी Sleep deprivation, anxiety, depression से जूझ रहे हैं l आँखों मे light पड़ने से नींद मे REM sleep (Rapid eye movement ) ज्यादा होती हैं औऱ गहन निद्रा( Deep Sleep) सीमित हो जाती हैं |


# Light pollution



Deeps

Friday 16 July 2021

Brain in the Vat : artificial intelligence

 As a human our unique features ;  that is awareness of self so called the first person experience,is on the Verge to dwindle. Humans are trying to be robots. And modern science of AI, ML, ROBOTICS is trying earnestly to emulate the human consciousness and to make robots as a human who can be aware of the self.🤔🤔


We are close to be brain in the vat soon. 😪😪

Sunday 14 June 2020

Meaning of Life : Suicide or Life

       The Myth of Sisyphus  फ्रेंच दार्शनिक Albert Camu द्वारा लिखित मेरी प्रिय पुस्तक में से एक है l आज यह किताब  बहुत दिनों बाद मैं फिर पड़ने लगा,  किन्तु गोद में रखकर कुछ खयालो में खो गया कि आखिर सुशांत सिंह राजपूत के मन में क्या खयाल आया होगा कि उसने जीवन की बजाय अन्य विकल्प को चुन लिया l सुशांत को मैंने एक अच्छे अभिनेता की बजाय एक सार्थक  जीवन जीने वाले व्यक्ति के रूप में पसंद किया है  l सुशांत  astronomical telescope से ब्रह्मांड को टकटकी से देखते,  रोज एक अच्छी पुस्तक का अध्यन करते ,  साथ ही उनके लिविंग रूम की दिवार पर  फ्रेंच दार्शनिक डेकार्टे के दर्शन की सुन्दर पंक्ति Cogito Ergo Sum को देखकर मैंने धारणा बनाई की यह व्यक्ति जिंदगी को  सार्थकता (मीनिंग ) से जीना
जानता है l आज की खबर ने मेरी इस धारणा को धूमिल तो नहीं किया ,  किंतु एक मूलभूत सवाल अवश्य खड़ा हो गया है कि आखिर जीवन का अर्थ (meaning ) क्या है l इस प्रश्न के सटीक उत्तर को मैंने कुछ हद तक कमू की किताब The Myth Of Sisyphus में पाया l पुस्तक में कमू जिंदगी के वास्तविक अर्थ (मीनिंग ) तथा इस प्रश्न का उत्तर देते है : क्या जीवन जीने  की  सार्थकता है या नहीं?

        कमू ने माना की जीवन का कोई अर्थ नहीं है अर्थात जीवन निरर्थक (Absurdity ) है l यह जगत निरर्थक है,  आपको स्वयं ही अपने जीवन को  एक अर्थ देना होगा l अतः पुस्तक में लेखक ने स्वयं प्रश्न किया  कि यदि जीवन निरर्थक है तो फिर भी हमें क्यों जीना चाहिए?  इस दुविधा के कामू ने तीन विकल्प दिये l पहले विकल्प के तौर पर आत्महत्या को कामू ने उचित नहीं माना,  हालांकि आत्महत्या व्यक्ति तब करता है जब उसको लगता है की उसके  जीने की  कोई वजह नहीं है  l दूसरे विकल्प को कमू ने दार्शनिक आत्महत्या (philosophical suicide ) कहा है जिसका शिकार हम सभी लोग है l हम जीवन के मूलभूत प्रश्नो के अल्पज्ञ (Superficial ) प्रश्न को मान लेते है तथा दार्शनिक आत्महत्या का शिकार बनते है l ऐसे अल्पज्ञ उत्तर  धर्म, परंपरा,  संस्कृति,  समाज आदि बनाते है और हमारी बुद्धि को कुंद कर देते है l यही कारण है कि  आज भी हम जीवन के मूलभूत प्रश्नों जैसे मृत्यु,  जीवन,  अस्तित्व,  ईश्वर,  प्रेम, मानवता के अल्पज्ञ उत्तर को मान रहे है तथा धर्म,  जाती,  युद्ध, अप्रेम, घृणा में उलझें हुऐ हैं l

        कमू का तीसरा विकल्प बहुत क्रन्तिकारी हैं जिसमें कमू प्रत्येक व्यक्ति के जीवन की तुलना ग्रीक के सिसीफस (Sisyphus ) की सजा से करते हैं l सिसिफस  को सजा मिलती हैं की पूरी जिन्दंगी  पहाड़ी के ढलान पर एक बड़े पत्थर को ऊप्पर धकेलना हैं,  किंतु जब पत्थर चोटी तक पहुँचता हैं तो लुढ़ककर फिर नीचे आ जाता हैं,  यह सिलसिला उम्र भर चलता रहता है l हमारी जिंदगी भी उसी पहाड़ी और पत्थर की तरह जिसमें हम  अथाह उम्र   सिसिफस का किरदार अदा करते है l

        हमें ज़िन्दगी के हर उतार चढ़ाव को समझने की कोशिश करते हुऐ जीवन को एक सार्थक  लक्ष्य देना होगा l हर कठिनाई,  असफलता,  चुनौती को स्वीकार करो और अपने जीवन को खुशहाल बनायें l हमेशा जीवन की चुनौती में दोनों विकल्पों को लात मारें और तीसरे विकल्प को चुनकर  सिसिफस बनें l जीवन का कोई निर्धारित लक्ष्य और अर्थ नहीं है जिसमें सफलता और असफलता की भी कोई मैराथन नहीं है l हमेशा स्वयं  को सिसिफस की तरह ख़ुश रखें और जीवन को अपने अनुसार एक नया आयाम दें l



दीपक कुमार जोशी DEEPS 

Thursday 28 May 2020

कायनात

हर मौसम की पहली बारिश में
बनते है, टूटते है बुलबुले
आंगन में,  कभी सामने के तालाब पर

हम झगड़ते रहते
बाँट लेते बुलबुलों को आपस में
तेरा,  मेरा
छोटा,  बड़ा
तेरा ख़राब ,  मेरा अच्छा

कायनात के खेल का
इंसा भी इक बुलबुला है शायद

समा जाता है सब
अनंत में......
आकाश में.....
समंदर में.....
कायनात में....
जब टूटता है बुलबुला कोई.....



दीपक कुमार जोशी 

Monday 6 April 2020

Humans are healing....

I can't see Burj khalifa from noida.....


        But I can see human values are healing in humans again due to staggering fear of imminent death..... Corona pendemic Lock down.

        Hindu philosophy always paid more emphasis on Moksha rather than Dharma,  Artha,  Kama,  so as to keep us on the right track of human existence.

        I think,  we all are so ambitious for Kama(Appetite ) and Artha ( Money ) that we are almost out of human orbit. Dharma ( Religion ) has already diverted from its values by so called Baba cults and their fanatic agents.

         Its time to balance all the four epitome of hindu philosophy : purushartha ( पुरुषार्थ ) to keep immaculate and sacrosanct our human values viz Love,  empathy,  peace,  care,  truth.


Our future is going to be very dark without these human values. Our generation of science is inundated with Artificial intelligence,  Robotics,  Big data science,  IOT etc which may imperil human intelligence.  However,  our future generation may encounter dearth of these human  values.

Back to vedas.... back to nature ..... To heal ourselves



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Sunday 1 September 2019

नाचनी का नाम (Etymology)

      नाचनी एक छोटा सा क़स्बा है जो पिथौरागढ़ ज़िले के तल्ला जोहार में  अवस्तिथ है। इसकी भौगोलिक संरचना एक दोआब की भाँति प्रतीत होती है किंतु यह एक V आकार की घाटी है जिसका निर्माण युवावस्था  में नदियों द्वारा अपरदन से होता है ।
       नाचनी का सामाजिक विन्यास मिश्रित प्रकार का है जिसमें नगरीय एवं ग्रामीण  समाज दोनो का  समावेश है।साथ ही यहाँ किसी भी जाती , नृजाती ( Ethenicity) , जनजाति के प्रभुत्व का कोई साक्ष तथा प्रारूप  दिखलाईं नहीं पड़ता । अतः सामाजिक संरचना  मिश्रित एवं सामवेशी है ।
      नाचनी के  शब्दार्थ , नामकरण , नाम की उत्पत्ति ( Etymology)के विषय  में इतिहासकार , ब्रिटिश विद्वान , यात्रा वृतांत , पुरातत्वविक साक्ष के  साथ साथ  बाबा गूगल ने भी मौनव्रत धारण किया हुआ है।इतिहासकार  बी डी पाण्डे की पुस्तक कुमाऊँ का इतिहास , एटकिंसन की हिमालयन गज़ेटीअर , देवेंद्र सिंह पोखरिया  रचित लोक संस्कृति ऐवम साहित्य , डॉ राम सिंह की सोर घाटी के इतिहास , जिम कॉर्बेट की मैन ईटर्ज़ ऑफ़ कुमाऊँ इत्यादि में भी नाचनी  के नामकरण की कोई जानकारी नहीं है ।

     सामान्यत , कुमाऊँ  की लोक संस्कृति में नदी , जाति , फ़सल , पहाड़ , देवता आदि के नाम पर गाँव , क़स्बों का नामकरण किया गया है । किंतु नाचनी शब्द का स्थानीय नदी , पहाड़ , जाति , देवता से कोई प्रत्यक्ष संबंध भी ज्ञात नहीं है। हमारे पुरखों एवं बुज़ुर्गों की लोक कहावतो तथा दंत कथाओं में भी कोई तार्किक रूप से मान्य उत्तर नही मिलता ।साथ ही नाचनी शब्द  का संबंध पुराण , आर्य , ख़स , किरात , गोरखा , अंग्रेज़ , भोटिया जनजाति से भी नहीं मिलता ।

    नाचनी नाम के शब्दार्थ एवं उत्पत्ति के सम्बंध में  अध्ययन के लिए मैंने दो निम्नलिखित अभिधारणाओ ( Postulates) का एक परिकल्पना ( Hypsothesis) से  तार्किक संबंध स्थापित कर अपने मत को आकार दिया ।

                  प्रथम अभिधारणा का संबंध  नाचनी के शब्दार्थ से है । स्थानीय बोली ( dialect ) में कुमाऊनि , नेपाली एवं शौक़िया का प्रभाव है , परंतु तीनो बोलियों में इस शब्द का कोई अर्थ , प्रयोग ज्ञात नही है । नाचनी शब्द  का ध्वनिक प्रयोग स्थानीय बोली में नचणी , नाचणी , नाछणी के रूप में किया जाता है ।
     नाचणी की समरूपता मराठी भाषा के नाचणी ( Nachani) शब्द से मेल खाती है ,  जिसका शाब्दिक अर्थ हिंदी में रागी अथवा मंडुआ होता है । कोंकण की भाषा , जो मराठी से मिलती जुलती है , में भी नाचणी शब्द का प्रयोग मंडुआ के लिए होता है । तेलुगु भाषा में नाचणी का प्रयोग जोवार और रागी फ़सल से मिलता है । मराठी बहुल क्षेत्रों में नाचनी आटा , नाचनी पराठा , नाचनी घावन ( Raagi Dosha) , नाचनी लड्डू , नाचनी खीर जैसे शब्द प्रचलित है ।

                   प्रथम अभिधारणा के  सत्यापन  के बाद दूसरी अभिधारणा मंडुआ और नाचनी से जुड़ी है । मंडुआ को मराठी में नाचनी बोला जाता है इसका रागी नाम हिंदी में आम रूप से प्रचलित है । मंडुआ को finger millet के रूप में जाना जाता है । मंडुआ मुख्यतः अफ़्रीका की फ़सल है जिसे 2000 ईसा पूर्व भारत में लाया गया । यह फ़सल भारत और नेपाल के हिमालयी क्षेत्रों में बोयी जाती है । नाचनी के क्षेत्रों में भी मंडुआ के पैदावार के लिए भौगोलिक परिस्थितियाँ प्रचुर रूप से उपलब्ध है ।  कुछ दशकों  पूर्व मण्डुआ यहाँ के मूल भोजन ( Staple Food) में शामिल था , किंतु जीवन शैली में बदलाव एवं अत्यधिक पलायन के कारण  मंडुआ के उत्पादन में अत्यधिक गिरावट दर्ज हुईं है । अभी भी आस पास के कुछ गाँवों में मण्डुआ उत्पादन होता है ।निस्सन्देह , नाचनी मण्डुआ  पैदावार का क्षेत्र था ।

     अंतत: , इस परिकल्पना ( Hypostheis ) के प्रारूप को आकार देने में कुछ सवालों ने सहायता की । जैसे नाचनी को मराठी शब्द किसने और क्यों दिया ? क्या कोई यात्री था ? उक्त सवालों ने नाचनी , मण्डुआ और मराठी के मध्य लुप्त कड़ी को खोजने की जिज्ञासा उत्पन्न की ।

     स्थानीय फ़सलों , जातियों , जनजातियों , यात्रियों , राजवंशों , गाँवों आदि के ऐतिहासिक छानबीन से निष्कर्ष आया की नाचनी क्षेत्र की कुछ  राजपूत जातियाँ  मूलरूप से स्थानीय है कुछ  जातियों का संबंध अन्य राज्यों , क्षेत्रों जैसे नेपाल , संयुक्त प्रांत से संबंध है । शाही का नेपाल , धामी का चित्तोरगढ़ , महर का राजपूताना , महरा का मैनपुरी , कार्कि का नेपाल और चितोरगढ़ , मेहता का झाँसी से पलायन का संबंध कुमायूँ के इतिहास में दर्ज है । एटकिंसन और बी॰ डी पाण्डेय के  अनुसार इस  क्षेत्र की ब्राह्मण जाति  जोशी तथा राजपूत जातियों दाणो , मरहटा वंश के महर , दानवंशी बोरा  इत्यादि का संबंध बम्बई और दक्षिण से है ।
       यद्यपि , मराठा शासन के इतिहास पार एक सरसरी निगाह  डालने से पता चलता है कि मराठाओ पर आक्रमण के दौरान अनेक जातियों ने मराठा क्षेत्र से पलायन कर कुमायूँ , मारवाड़ , संयुक्त प्रांत में शरण ली । इन जातियों में प्रमुख रूप से जोशी जाति  ने पलायन किया तथा राजस्थान और कुमाऊँ में शरण ली । इतिहासकार बी डी पांडेय के अनुसार जोशी जाति ने कुमायूँ  के आल्मोरा , दंन्या , जागेस्वर , जोहार में  शरण ली । निष्कर्षत: इन जातियों के मराठी सम्बंध एवं नाचनी के नाम में सम्बंध की झलक देखीं जा सकतीं है ।


दीपक कुमार जोशी
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Saturday 16 February 2019

Be A warrior


Kill the Enmity not the enemy


How to kill the enemy..?

1. Do your duty honestly.
2. Avoid currupt practices.
3. Wear helmets.
4. Be Good Samaritans.
5. Be whistleblower against curruption.
6. Participate in sports, excercise, yoga , meditation.
7. Maintain personal hygiene and surroundings.
8. Follow traffic rules.
9. Be the change at micro leve.
10. Help downtroddens 

Borders and airspace are secured by our warriors.


Question:  who will fight with the enemy inside the borders viz poverty, corruption, e waste, food fascism, naxlism..etc ..?

Ans : only and only those civilians i.e. “I , we , you “ not anybody else. 


Be A warriots ...... like him....



deeps2200.blogspot.in

Deeps Venteruption

What is Hinduism? : its time to Kill the God

 छुट्टी का दिन था, तो  सुबह चाय के साथ Lax Fridman का पॉडकास्ट सुन रहा था, जिसमें Roger Penrose ने consciousness औऱ AI के कुछ पहलुओं पर बात ...