Sunday, 16 January 2022

What is Hinduism? : its time to Kill the God

 छुट्टी का दिन था, तो  सुबह चाय के साथ Lax Fridman का पॉडकास्ट सुन रहा था, जिसमें Roger Penrose ने consciousness औऱ AI के कुछ पहलुओं पर बात की | बहुत दिनों से ये puzzle मेरे दिमाग़ में  दौड़ रहे थे, क्योंकि Hinduism में माना गया है की Consciousness को नहीं समझा जा सकता | वेदांत दर्शन, मांडूक्य उपनिषद्  के अनुसार Consciousness ( ब्रह्म और  चित्त ) को मानव मस्तिष्क द्वारा नहीं समझा जा सकता | Roger penrose ने इन्हीं बातों को Mathematical physics के द्वारा समझाया है कि क्यों ब्रह्म को नहीं समझा जा सकता |  चाय के साथ मैंने मांडूक्य उपनिषद् के 7वॉ श्लोक, Roger penrose कि shadows of the mind और Max Tegmark की our  Mathemetical universe के मध्य इस कड़ी को ढूंढ़ रहा था, साथ ही Hinduism में मेरे गहरे विश्वास की धारणा औऱ मजबूत हो गयी | तभी मोहल्ले का स्पीकर बजा " यूपी में फिर से भगवा लाहाराएँगे " | आज कॉलोनी में चुनाव रैली थी, जिसके मुख्य अतिथि एक विद्वान थे, जो जोर जोर से चिल्ला रहे थे की हमने मंदिर बना दिया, हिन्दू राष्ट्र बनेगा, भगवा आएगा, ना जाने क्या क्या फूहड़ ज्ञान था | मैं स्पीकर की आवाज के साथ हिन्दू दर्शन के खयाल में उलझा रहा | Quantum mechanics, String Theory, Multiverse की शायद ही क़ोई ऐसी किताब हो जिसमें Hinduism का जिक्र ना हो | Eugene wigner, Schrodinger, Fritjof capra, werner Heisenberg जैसे अनेक विद्वान Hinduism के वेदांत दर्शन से प्रभावित थे l Quantum gravity, Strings theory औऱ Hyperspace के अनसुलझे रहस्य भी हिन्दू दर्शन में लिखे हुऐ है, किंतु उनको समझना मुश्किल है l



 Friedrich Nietzsche जिसने

 " Gott ist tott " i.e God is dead  के सन्देश द्वारा जर्मनी में जागरूकता की नींव रखी | आज के भारत को भी नीत्शे की जरुरत है, जो अपने तर्क की धारधारी तलवार से ईश्वर का गला काट दे औऱ  मुक्त कर दे हिन्दू दर्शन को भगवान औऱ ईश्वर से | अंततः, hiduism को वैदिक संस्कृति के मानको में स्थापित कर दे, जहाँ ईश्वर की बजाय सत (Real) का अस्तित्व हो, औऱ सभी मनुष्य स्वयं की खोज से प्रेरित हो |( that art thou )



अहम्  ब्रह्मस्मी 

Deeps


Sunday, 26 December 2021

पहाड़ों के पलायन का मनोवैज्ञानिक पहलू : अब्राहम मास्लो के 'आवश्यकता पदानुक्रम' पर आधारित (Maslow's Hierarchy of Needs)

           पहाड़ों के दर्द की एक पुरानी कहावत है  " पहाड़ों की जवानी,मिट्टी औऱ पानी कभी पहाड़ों के काम नहीं आती" l आज भी उत्तराखंड की  यही दशा औऱ दिशा बरकरार है l उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारियों का नारा "बाड़ी मडुआ खाएंगे, उत्तराखंड बनायेंगे " पूरा तो हो गया, किंतु समस्याए जस की तस बनी हुई हैं l

        समाजशास्त्री तथा अनेक विद्वानों ने  उत्तराखंड की समस्याओं के लिये अनेक तर्क एवम सिद्धांत दिये हैं l किंतु, मैं इन समस्याओं के मनोविज्ञान पहलू पर अधिक बल देता हूँ l मानवतावादी मनोविज्ञान के पक्षधर अब्राहम मास्लो के 'थ्योरी ऑफ़ मोटिवेशन ' में प्रतिपादित 'आवश्यकता पदानुक्रम ' ( Hierarchy of needs ) पर सरसरी निगाह  डाले तो उत्तराखंड में पलायन के कुछ मूलभूत कारण औऱ समाधान नजर आएंगे l
उदाहरण के तौर पर, आज युवा वर्ग अच्छे औऱ बेहतर जीवन की तलाश ( Physiological needs ) में मैदानों की तरफ रुख़ करता है l मास्लो के पिरामिड की पहली सीढ़ी शारीरिक आवश्यकता ( फिजिलॉजिकल नीड्स ) को पाने की दौड़ में शामिल पहाड़ी युवा को शहरों में ही उसका हल नजर आएगा l क्योंकि पूरा परिवार नौकरी के बाद मैदानों के सुख सुविधाएं भोगने के सपने देख रहा है ( safety needs : शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएं, आपदा का डर नहीं ) l
फिर वह युवा शहरों के सुख सुविधा में  वही का होकर रह जाता है ( safety needs )l उसका पहाड़ से अपनापन औऱ प्यार छूट नहीं पाता, पर पहाड़ से केवल लगाव गडेरी, चूख,घी भट्ट आदि द्वारा बना रहता है, जो की मैदानों में पहुंच जाती है  किसी हीरदा के मैक्स द्वारा ( Love belongings needs ) l कभी कभार मन हुआ तो देवता, जागर, छोल के बहाने पहुंच गये पहाड़, एक विदेशी सैलानी की तरह कार, सूट बूट औऱ हिंगलिश जुबान के साथ ( Esteem needs )l  उनके बच्चों से तो कुमाऊनी औऱ गढ़वाली बोली की उम्मीद क्या करें, गाँव में रह रहे बच्चे भी अपनी बोली को जुबान पर लाने से कतरा रहे है l यह डर स्वाभाविक है, जिस तरह शहरों में बच्चे हिंदी से कतरा रहे हैं l

हमारे नेतागण औऱ विद्वान तो कोमा में हैं, उनको खबर ही नहीं की उत्तराखंड की बहुत बोलियाँ कुमाऊनी, गढ़वाली, जौनसारी, भोटिया,थारू, बोक्सा,  रंल्वू, राजी विलुप्ति के कगार पर हैं l कम से कम, कुमाऊनी औऱ गढ़वाली बोली को लिपिबद्ध करके भाषा का दर्जा अवश्य मिलना चाहिए l क्योंकि ये बोलियाँ जुबान से तो दूर होती जा रही हैं, साथ ही साहित्य में इनकी उपस्थित बहुत कम हैं l उदाहरण के तौर पर मनोहर श्याम जोशी की कसप औऱ क्याप जैसी कालजयी रचनाओं में कुमाऊनि बोली का प्रभाव है l बोली के परिरक्षण में साहित्य औऱ  लोक संगीत की अहम् भूमिका है l

उत्तराखंड के बड़े विद्वान, थिंक टैंक, नेता - मंत्री,प्रशानिक अधिकारी  बड़े बड़े एयर कंडीशन औऱ कंप्यूटराइज्ड ऑफिस में बैठकर नीति एवम मासोदा तैयार करते हैं की पहाड़ी संस्कृति का संरक्षण करना हैं, पलायन रोकना  हैं l
अरे! अकलमंद बड़े लोगो, आपने शहरों में अपने लिये बंगला, कोठी बना रखी हैं, बच्चे विदेश में पड़ रहे हैं औऱ उन बच्चों को शायद अपने गाँव का नाम भी नहीं पता l ये लोग संस्कृति औऱ पलायन पर नीति नहीं बना रहे, बस अपनी नौकरी औऱ  कुर्सी के पीछे लगे हैं l अगर संस्कृति के संरक्षण का का इतना ही खयाल हैं तो बुलाओ अपने विदेश औऱ  बड़े इंजीनियनीरिंग कॉलेज में पड़ रहे बच्चे को, सिखाओ उसको छलिया नृत्य, ढोल दमुआ, लगाने दो उसको रात भर जागर, भगनौला  l

क्या संस्कृति बचाने का कर्तव्य केवल गरीब औऱ अनपढ़ पहाड़ी का हैं, जो बेचारा दिन रात जागर लगा कर, छलिया बनकर, डोल दमुआ बजा कर अपना औऱ अपने बच्चों का जीवन बसर कर रहा हैं l उसकी मजबूरी हैं ये सब करना, अपने शौक के लिये नहीं करता ये सब वो l पहाड़ में शिक्षा व्यवस्था, रोजगार, स्वरोजगार के नाम पर तो छल हो ही रहा हैं l उसका बेटा जो इंजीनियर औऱ डॉक्टर बन सकता था, मजबूरन उठायेगा ढोल,  दमुआ, हुड़का औऱ डाल देगा अपने सपनो के चाँद पर रोटी की चादर l फिर, एक  दिन संस्कृति महोत्सव समारोह में उसको बेस्ट छलिया, जागर गायक पुरुस्कार से नावाजा जायेगा बड़े बड़े लोगों द्वारा l

 संस्कृति औऱ पलायन पर हो रही  ढकोसलेबाजी का सिविल सेवा परीक्षा के इंटरव्यू औऱ यूनिवर्सिटी के निबंध प्रतियोगिता में लेख के अलावा क़ोई प्रसंगिकता नहीं है l

क़ोई भी अधिकारी, कर्मचारी, सेवक पहाड़ों की दुर्गम परिस्थितियों में तैनाती नहीं चाहता, अपने बच्चों की शिक्षा औऱ स्वास्थ्य सेवाओं के आभाव में वह मैदानों की पोस्टिंग  औऱ पोस्टिंग कराने वाले अधिकारी से चिपका  रहता है l अगर, हमारी राजधानी पहाड़ी दुर्गम इलाके में होगी तो, पूरे प्रशासन के साथ साथ विकास भी भागेगा पहाड़ों की तरफ l उत्तराखंड पहाड़ी राज्य है, जिसमें मैदानों का क्षेत्रफल केवल 14% है, किंतु यहाँ सब उलटी दिशा में बह रहा है l लोग, विकास, युवा सभी पहाड़ों से मैदानों की तरफ भाग रहे है l जबकि पहाड़ी राज्य में सब पहाड़ो की तरफ जाना चाहिए l स्थिति ऐसी भयावह है, कि पहाड़ों में अब केवल वही लोग रह गये हैं, जिनके पास संसाधन नहीं हैं मैदानों में बसने के लिये l ऐसे बहुत से लोग मजबूर हैं पहाड़ों की आपदा औऱ  डॉक्टर रहित अस्पतालों में जान गवाने के लिये l साथ ही, पहाड़ों में जो अच्छी दाल, मसाले, सब्ज़ी, फल होते थे, उनका व्यवसायीकरण होने से स्थानीय उत्पाद इतने महंगे हो गये हैं कि स्थानीय लोग उन्हें खरीद नहीं सकते, क्योंकि इन उत्पादों की मांग मैदानों में बढ़ गयी हैं l

ऐसा नहीं हैं हैं कि मैंने उक्त समस्याओं का ठीकरा कुछ विशेष औऱ अभिजात्य वर्ग के सर पर पर फोड़ा है l इन समस्याओं के लिये क़ोई विशेष समूह या फिर व्यक्तिगत तौर पर क़ोई भी उत्तरदायी नहीं है l बल्कि एक समूह के रूप में समाज, राज्य, औऱ हम सभी जिम्मेदार हैं जिसका समाधान भी हम ही कर सकते हैं l

सभी लोगों के संज्ञान में इन समस्याओं का कारण औऱ समाधान होता है, किंतु उसको व्यावहारिक आयाम देना कठिन होता है, जिसे मनोविज्ञान की भाषा में संज्ञानात्मक विसंगति ( Cognitive dissosannce ) कहते है l मानव  विकास का इतिहास इन्हीं जटिलताओं से भरा हुआ है l इंसान की शारीरिक भूख ( apetite ) शांत होने के बाद उसको मानसिक तृप्ति चाहिए l उसके बाद ही मानव  नैतिकता औऱ आत्मा संतृप्ति की अवस्था ( Self actualization ) को प्राप्त करता है l 

निष्कर्षत:, पहाड़ों की सभी समस्याओं की जड़ पलायन हैं, औऱ इसका इलाज़ करने के लिये पर्यटन ही काफी हैं कित्नु इसके लिये एक मजबूत राजनीतिक इच्छा शक्ति एवम सामाजिक संकल्प जरुरी हैं l


दीपक कुमार जोशी 

Wednesday, 22 December 2021

winter spiti Dairy : Kids and exams

Spiti dairy: 📸 सभी बच्चों के exams चल रहे थे l home stay के शायद sabhi guests को exams schedules याद हो गये थे 🤣l  Being a solo traveller, once we  ( with others solo or groups ) discussed   कल तो हिंदी था ना, अरे नहीं परसों था हिंदी, आज maths का था, कल drwaing का हैं l कल last paper हैं 🤣🤣
After exams: बच्चों के तो exams ख़त्म हो गये, पर बच्चों ने अपने home stay मैं आये guests का exams lena शुरू कर दिया l दिन रात अपने PC, Coding, data, office, future plans की tension में जो guest अपना बचपन भूल आये थे कही ऑफिस की दराज औऱ D drive में l बच्चों ने रख दी डिमांड की भैय्या, अच्चो micky mouse,  apple, landscape बनाने की l सभी guest लगे हुऐ हैं अपने skills दिखाने मैं l मेरे अंदर का भी majnu भाई वाला पेंटर जागा औऱ बना दिया एक ग्रीन apple l but मुझे बहुत वक़्त औऱ भारी भरकम तर्क के साथ Tenzin dolkar को convince करना पड़ा की ये apple हैं l🤣
deeps

Wednesday, 1 December 2021

Lurch of Lemmings

  Civil Liberty vs Natural Liberty : State को लगा की ट्रैफिक समस्या को सही करना है तो रोड का विस्तार करना चाहिए, किंतु रोड के किनारे बनी  बस्ती को कैसे हटाया जाये?  फिर क्या, फरमान जारी हुआ, state ने अपना क्रूर लेवियाथान वाला खोल ओड़ा l बन्दूक धारी सुरक्षा बल औऱ आधुनिक मशीनो (JCB ) के साथ  काम हुआ बस्ती को हटाने का l बस्ती को तो कुचल दिया, पर एक पेड़ बीच में आ गया l State ने अपना दम दिखाया, किंतु Environment activist धरने में उतर गये l बस्ती तो हट गयी, पेड़ को नहीं हटा पाये lबस्ती के लोगों ने आधुनिक राज्य की सभ्यता औऱ civil liberty को पाने के लिये, अपने सारे Natural rights औऱ Liberty राज्य को सौंप दी l किंतु, राज्य की चालाकी थी या फिर कुछ लोगों की,  बहुत लोग आधुनिक सभ्यता में शामिल हो गये औऱ एक सभ्य नागरिक के खोल में खूब मजा लूटा रहे civil liberty का l जो चालाक नहीं थे, वो रह गये इस दौड़ में पीछे, साथ ही Civil Liberty पाने की आशा में Narutal liberty भी खो दी l अब उनकी हालत Lemmings की तरह है, जी suicide के लिये समुद्र में तो कूद जाते हैं, किंतु उनको तैरना भी आता है l अब ऐसे स्थिति हैं की, state of nature में नंगे घूम सकते थे, खाना भी था, कोई रोक टोक नहीं थी, उसने अच्छे कपड़े,भोजन , बेहतर  जीवन की आशा में सब पीछे छोड़ दिया l अब ऐसी हालत हैं की, ना तो नंगा घूम सकता हैं, ना ही पहनने के लिये कपड़े हैं, ना ही जानवर को मारकर, युद्ध करके पेट की आग को शांत कर सकता हैं, ना ही उसके पास साधन हैं सभ्य होकर जीने में l आधुनिक समाज तो विकास की पराकाष्ठा में गुफाओं से गगनचुम्बी अट्टालिकाओ तक पहुंच गया l वह  निकल आया Natural liberty से इतना दूर की वापस नहीं जा सकता औऱ Civil liberty की मृगमरिचिका पाने की उम्मीद में झूल रहा हैं l


Deeps

Monday, 1 November 2021

Existence and meaning = absurdity?

 Perspective 90's kid : आज शाम को जब बाहर देखा तो चौंक कर बाहर गया l नजदीक से देखा तो LED lights थी, दिवाली के लिये सोसाइटी वालों ने, पेड़ पोंधों को भी नहीं छोड़ा I मुझे बचपन की याद आ गयी, जब रोज शाम को तारे गिनते, फिर अचानक जुगनू ( Firefly ) दिखने लग जाते I जुगनू के पीछे भागते, उनको बोतल में भी बंद किया l पकड़ कर अपने रूम मे भी बंद किया l एक दिन तो जुगनू को ऊँगली से मार कर, अपनी दिवार में लाइन बना दी, जो रात भर चकती रही l फिर मम्मी ने बताया की ऐसा नहीं करते, जब भी जुगनू घर में आये उसको आटा खिलाओ l आखिरी बार जुगनू से चमकता जंगल, असम में देखा था l मैं भी लाया हूँ LED लाइट की लड़ी लंबी से, किंतु मन नहीं है लगाने का l सोचता हूँ मम्मी आये औऱ सोसायटी वालों से कहे की ऐसा नहीं करते l एक दिन सोचने के बाद अब लग रहा है,मेरे भी घर के आगे सूना सूना लग रहा है l मैं भी  माला उठाऊँगा औऱ कल पेड़ मैं लगा दूँगा l औऱ मन ही मन Sartre से  कहूंगा " my existence is absurd " l

Saturday, 7 August 2021

Postmodernism : Real Heroism vs fake heroism(pseudoheroism)in Post truth India

       India has entered into a postmodernism phase of ideology,  though which is in a staggering mode. A critical awareness and awakening is snowballing among our youth about our Environment, biodiversity,  casteism, religion, animals, human rights and our indian culture too, which is necessary to led the foundation of a new india. However, most of the Indians have been  fascinated by the fake social media attention, which I would call Post truth India.

 Post truth india means our youths and many Indian are engaged in emotional driven reality or subjective reality rather than the factual and objective reality. I would elaborate here, many TV ads, movies, insta-fb stories are emotionally so engaging and convincing that, these marketing gimmicks hijack our emotion and we tend to slip from the factual and objective reality.

Story A : A weekend party is planned by an army unit in a bitterly cold and snow clad region. The mood and morale of everyone is  enthusiastically partying and dancing. Suddenly, an int report comes about the movement of terrorist into Indian territory. The entire unit takes no time to swing their mood from dance to fight for the nation. Many teams take their position immediately to safeguard the land. Entire night all the teams freez their motion for an ambush in a snowy and freezing night. There is no retake, no camera, no filter and even there is no tea break, no natural calls, absolutely silent.

 Story B : A famous actor of our country needs make up, juice breaks and hundreds of take- retake to  shoot a scene of movie or advertisements.


Analysis of both story :first story A is no where published and marketed but second story  B is marketed everywhere from cinema theatre, TV, OTT etc.Eventually, the Story B is emotionally so attractive and engaging that our emotions are hijacked and the actor of movie becomes hero and icons for our entire country.And  we never come to know about the real heroes  and objective reality of the snowy night at borders, where there is no retake and no relaxing breaks.As a result , a fake heroism is settled deeply into our subconscious mind and  this slippage of facts and reality drives our youths from real heroism to fake heroism.

 The Mountain Dew story : Usually we see the bike jump, bike stunt advertisement  by our famous actors after drinking the mountain dew. Another actor jumps from a high rising building after drinking the  cola products or after wearing a branded vest.

         Just ask yourself, is there any moment, when we questions these advertisement's reality and the integrity of these actors. These products are marketed by the fake heroes and actors not by the real heroes.
We need to question who are our real heroes and who must be our icons. We need to understand the real difference between the hero and the actors.

        A person becomes hero, when he faces the real situations and fights against the all odds of life for himself and as well as for his country.But an actors is just a common man who is acting in front of camera. I have no intention and personal interest to offend and trivialise the acting. I too like many actors from my bottom of heart like manoj kumar, Raj kumar, Nana patekar, Manoj Bajpei, Kk menon etc.

 Despite all the facts, who are our heroes?

1)  we need light or torch to go to toilet even during day time, but a fighter pilot flies alone in a dark sky at an altitude of 30 thousands feet.


2)  A helicopter or airplane on the rescue mission during emergency  or disaster is flown  by our real heroes without any retake.

3)  At international level , our sportsman compete with the word champions where there is no retake or not a minute chance of error is acceptable, for the sake of national pride.

4)  Media hyped scantly clad actresses in front of camera get the huge fan following and unyielding attention. But the real women are into cockpit, borders, sports grounds, mountain peaks, hospitals, schools etc.

5) A writer takes years to pen down a peace of literature, philosophy, truth which brings laurels for country likewise the painters, musicians especially our classical musicians and folk artists.

6) Our farmers who put their sweat and toil hard to build our granaries.

7) Many overrated magazines, TV channels and social media platforms set the standard of beauty and handsome man. In these standards, few fake heroes and heroines are compared, eventually these self declared beuty or handsome are marketed among us. As a result, they become the face of country and these fake guys advertise the fake beuty products and many other products.

                    We don't like and follow the fake heroism, but our mind is  secretly persuaded and forced to like and follow them. Its like using the sunflower oil or embellished Toothpaste. First of all, market is flooded with the cholesterol and obesity problems and then the sunflower oil is market as a remedy. These marketing gimmicks dominate our subconscious mind and control our decision making. But, its a time to questions and hammer these things which would illumine the awareness of our youths. We have to decide, do we need  a new India of fake heroism or real india ?



I shall put my list of few real Indian hero like Rider girl Vishakha ( RGV), India in motion you tuber, Writer Irsad kamil, prasoon joshi , all soldiers, All Olympic participants and winners, sports personnel, pepal farm animal activists, COVID warriors, Google boy kautilya, Grandmasters Ramesh Praggnanandhaa, Climate activist Licypriya Kangujam, Everester Arunima Sinha, Hima das, and many more.

I had to go through deep introspective enquiry of myself to culminate these views.My views are personal and liberal, not paid, not marketed, above all, I have no biased perspective for anyone, because argumentation and synthesis of established facts, values, beliefs, conventions etc leads to truth and reality, which is indispensable for humanity.

What about your list? Its your will, whether to incorporate real or fake hero in your list.

Tuesday, 20 July 2021

पोसीदा ताला

बालकनी में बैठा 

सोच रहा हूँ 

बारिश की बूंदों को छूना

किवाड़ पर लगे बड़े से

ताले की चाबी हैं मेरे पास हैं |


पर,कल की चिंताओं

कुछ कर गुजरने की उम्मीद

मुक़्क़मल होने की जद्दोजहद

आदर्श समाज की पारिपाटी

फर्द बनने की क़वायद

आशाओं में खरे उतरने की कोशिश

ना जाने कितनी ख्वाहिशे गिरफ्त हैं 

मेरे जहन के पोसीदा ताले में 




बारीश को  भी  जहन में दफ़्न कर

कैद हूँ बालकनी में दीप 

कई पोसीदा  तालो में ||


दीप 

Deeps Venteruption

What is Hinduism? : its time to Kill the God

 छुट्टी का दिन था, तो  सुबह चाय के साथ Lax Fridman का पॉडकास्ट सुन रहा था, जिसमें Roger Penrose ने consciousness औऱ AI के कुछ पहलुओं पर बात ...