Monday, 13 June 2016

"इज़ा फसक , पहाड़ कसक"

इज़ा ! भाबर बे काक फून आ रो
"हिरदा मैक्स  मैं गडेरी, मडुआ
भेज दिया"।

अरे नरुवा ! काका है कये ;
पहाड़ मै आब के ना हून ;
चूख बानर नेल उजाड़ हाल ;
गडेरी शौल ले ............।
नै माल्टा ,नै घ्वागा,
नै पिनाल,नै किरमड़,
नै हिसालु,नै काफल,
नै भट , नै गहत,

कॉ गै फूलदेई , कॉ भिटोली
नै घुघुती माला , नै हरयला 
कॉ गई खजुर , कॉ खतड़ुवा
नै भगनोला , नै चाँचरी

खेती -पाती भल्लकै पट्ट  है रै ;
बगड़-धुरा बॉज्ज रै,
सबै जागा भांग फुल रै ।। नरुवा !

कका हैं कये , दस साल है गई ,
तेर बूबू धो -धो मान रैई ;
ऐंल साल जागर लगूँन नरुवा !
अंत्योदय वाला चॉल ;
एक बाकर इंतजाम है जालो ।
पुछार कुनो भूत पूजि दियो,
नरुवा भर्ती है जालो ....।

नरुवा ! कस्सीकै, तू ले भर्ती
है जने , हैंम ले भाबर हिट जानू।
नौकरी वाला सब,
भाबर बस गई, 
पहाड़ में बस बूड़ि -बाड़ा रै गई।
कै  दिन बादल फाट जालो,
सबै च्वाप्प है जालो ।       

कॉपीराइट @2016 दीपक कुमार जोशी

                      दीपक कुमार जोशी   'दीप्स'

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