जल सत्याग्रह की नैतिक शपथ
पिछले दो वर्षों से लगातार कमजोर मानसून के कारण लगभग सम्पूर्ण भारत सूखे की चपेट में है।देश के प्रतिष्ठित थिंक टैंक, नीति निर्माता से लेकर आम आदमी भी यह जुमला लिखता,पढता तथा जानता है ”भारतीय कृषि मानसून का जुआ है”।कमजोर मानसून से कृषि एवं अर्थव्यवस्था तो चरमरा ही जाती है; साथ ही साथ सूखा जैसी आपदा भी दस्तक देती है।
दक्षिण-पशिचम मानसून से प्राप्त वर्षा का जल सिंचाई का सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्रोत है।मानसून का पिछली एक सदी का इतिहास इसकी अनिश्चितता एवं अनियमितता की कहानी बयां करता है। मानसून के आगमन (Onset) तथा निवर्तन के समय में अनिश्चितता के साथ-साथ वर्षा के पैटर्न में अनियमितता इसकी विशेषताएं बन चुकी है। फलतः देश के कुछ भागों में बाढ़ की समस्या है तो कहीं सूखा स्वाभाविक है।
मानसून की इन विशेषताओं जनित आपदाओं का दोष केवल मौसम-वैज्ञानिकों तथा मानसून विशषज्ञों की भविष्यवाणी के मत्थे पड़ना तर्कसंगत नहीं है। आधुनिक संचार साधनों,उपग्रह चित्रों,डॉप्लर रडार तथा गणितीय मॉडलों (N.W.P.) की सहायता से सटीक भविष्यवाणी की जा रही है।हालांकि मानसून की सटीक भविष्यवाणी के भरोसे हाथ पर हाथ रखकर बैठना अंधे द्वारा चश्मे के भरोसे पैदल चलने जैसी स्थिति होगी।अच्छी भविष्यवाणी नीति-निर्माण,प्रबंधन तथा आपदा प्रबंधन के लिए एक महत्वपूर्ण टूल की तरह है।सफल भविष्यवाणी की स्थिति में समस्याओं पर नियन्त्रण पाना देश की कुशल प्रबंधन दक्षता साबित करता है। यदी भविष्यवाणी में विचलन के वावजूद भी समस्याओं पर नियंत्रण पा लिया जाता है तो यह देश की आपदा प्रबंधन की दक्षता तथा आपदा से निपटने की तैयारी का परिचायक है।
सूखे की स्थिति से निपटने के लिए जल प्रबंधन की दिशा में प्रभावशाली नीति तथा उसका कठोरता से पालन करना सर्वोपरि उपचार साबित होगा।अन्यथा सूखे के दंश का ठिकरा फोड़ने के लिए एक दोयम दर्जे की लम्बी फेहरिस्त तो हमारे पास सदैव उपलब्ध रहेगी। अल-नीनो,जलवायु परिवर्तन,I.P.L. मैच ,गन्ने की फसल तथा धोनी का स्वमिंग पूल आदि तो फोर्ब्स की सूची में सर्वोच्च स्थान बनाने लायक तर्क है।
आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति से परे,सभी को यह आम बात समझ क्यों नहीं आती कि जल संकट का प्रमुख कारण जल चक्र से छेड़छाड़ है। हमारी पृथ्वी का एक सामान्य जल चक्र है,जल तीनो अवस्थाओं ठोस,द्रव एवं गैस में वायुमंडल,जलमंडल तथा स्थलमंडल में दीर्घकालिक एवं लघुकालिक चक्र के रूप में जीवमंडल का अहम् हिस्सा है। इस चक्र को प्रभावित किये बिना मानव समुदाय द्वारा अपने लिए आवश्यक जलराशि का इष्टतम उपयोग करना ही एकमात्र उपचार है। जल चक्र को बनाए रखने वाले वृक्षों तथा जंगलों को काटकर कंक्रीट से धरातल को अप्रवेश्य बनाया जा रहा है। वर्षा जल तथा बहते हुए जल की बजाय दीर्घकालिक चक्र में संरक्षित भू-जल का अतार्किक विदोहन हो रहा है। यह अव्यवस्था इस कदर चरम तक पहुँच चुकी है जो जल प्राकृतिक स्रोतों के माध्यम से लोगो तक पहुंचाना चाहिए;ट्रेन,नलकूप,आदि आधुनिक तंत्र द्वारा उपलब्ध किया जा रहा है। यह संपूर्ण देश में जल प्रबंधन की अव्यवस्था को बयां करने वाली घटना है।जिसके लिए सरकार नीति-निर्माता,प्रशाशक या राजनेता ही उत्तरदायी नहीं है,बल्कि जल से जुड़ा हुआ प्रत्येक व्यक्ति है।
अब समय आ गया है गाँधी जी के नमक सत्याग्रह की तरह जल सत्याग्रह करने का ।प्रत्येक व्यक्ति को जल के इष्टतम उपयोग,वर्षा जल के भण्डारण,बहते जल को रोकने एवं रुके हुए जल को भू-जल पुनर्भरण करने की शपथ लेनी होगी।……………जय हिन्द ……….
(दीपक कुमार जोशी)
मौसम-विज्ञान सहायक
Publication:
www.studyinhindi.com/jal-satyagraha-ethical-oath-water-crisis-is-the-best-treatment/
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