Tuesday 20 July 2021

पोसीदा ताला

बालकनी में बैठा 

सोच रहा हूँ 

बारिश की बूंदों को छूना

किवाड़ पर लगे बड़े से

ताले की चाबी हैं मेरे पास हैं |


पर,कल की चिंताओं

कुछ कर गुजरने की उम्मीद

मुक़्क़मल होने की जद्दोजहद

आदर्श समाज की पारिपाटी

फर्द बनने की क़वायद

आशाओं में खरे उतरने की कोशिश

ना जाने कितनी ख्वाहिशे गिरफ्त हैं 

मेरे जहन के पोसीदा ताले में 




बारीश को  भी  जहन में दफ़्न कर

कैद हूँ बालकनी में दीप 

कई पोसीदा  तालो में ||


दीप 

No comments:

Post a Comment

Deeps Venteruption

What is Hinduism? : its time to Kill the God

 छुट्टी का दिन था, तो  सुबह चाय के साथ Lax Fridman का पॉडकास्ट सुन रहा था, जिसमें Roger Penrose ने consciousness औऱ AI के कुछ पहलुओं पर बात ...