बालकनी में बैठा
सोच रहा हूँ
बारिश की बूंदों को छूना
किवाड़ पर लगे बड़े से
ताले की चाबी हैं मेरे पास हैं |
पर,कल की चिंताओं
कुछ कर गुजरने की उम्मीद
मुक़्क़मल होने की जद्दोजहद
आदर्श समाज की पारिपाटी
फर्द बनने की क़वायद
आशाओं में खरे उतरने की कोशिश
ना जाने कितनी ख्वाहिशे गिरफ्त हैं
मेरे जहन के पोसीदा ताले में
बारीश को भी जहन में दफ़्न कर
कैद हूँ बालकनी में दीप
कई पोसीदा तालो में ||
दीप
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